फ़ना के रास्ते पर गामज़न हैं हम मिरे हमदम सँभल कर पाँव रक्खें अब है शाम-ए-ग़म मिरे हमदम अंधेरे में निकलना है तलाश-ए-नूर में तुझ को कभी लौ हो न तेरे दर्द की मद्धम मेरे हमदम गुज़रती जा रही है उम्र सारी फ़िक्र-ए-दुनिया में कभी हो फ़िक्र-ए-फ़र्दा में निगह पुर-नम मिरे हमदम रिया की हुक्मरानी हर तरफ़ है तू भी अब दिखला यहाँ इख़्लास की शमशीर का दम-ख़म मिरे हमदम चराग़-ए-इल्म-ओ-फ़न तेरा अगर रौशन रहे यूँही न होगा जल्वा-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र भी कम मिरे हमदम हवा बातिल की फिर अब सनसनाती है ज़माने में हिरासाँ क्यों है तू रख कर यक़ीं मोहकम मिरे हमदम तिरी यादों का परचम जब भी लहराता है आँखों में तिरी क़ुर्बत भुला देती है हाल-ए-ग़म मिरे हमदम