फ़ना नहीं है मोहब्बत के रंग-ओ-बू के लिए बहार-ए-आलम-ए-फ़ानी रहे रहे न रहे जुनून-ए-हुब्ब-ए-वतन का मज़ा शबाब में है लहू में फिर ये रवानी रहे रहे न रहे रहेगी आब-ओ-हवा में ख़याल की बिजली ये मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी रहे रहे न रहे जो दिल में ज़ख़्म लगे हैं वो ख़ुद पुकारेंगे ज़बाँ की सैफ़-बयानी रहे रहे न रहे दिलों में आग लगे ये वफ़ा का जौहर है ये जम्अ' ख़र्च-ए-ज़बानी रहे रहे न रहे जो माँगना है अभी माँग लो वतन के लिए ये आरज़ू की जवानी रहे रहे न रहे