इक इमारत नई ता'मीर हुई जाती है शहर की इक नई तफ़्सीर हुई जाती है ऐ मिरे अज़्म-ए-सफ़र खींच कि ले जा मुझ को इक क़सम पाँव की ज़ंजीर हुई जाती है खींचने आई है अब मौत मिरे दामन को आप के ख़्वाब की ता'बीर हुई जाती है हद तो ये है कि मिरी ज़ात के अंदर भी अब जा-ब-जा आप की जागीर हुई जाती है मैं ने तो ख़्वाब समुंदर कि ही पाले थे मगर ये नदी किस लिए ता'बीर हुई जाती है क्या ग़ज़ब है कि तेरे नाम की तोहमत कब से बे-सबब मेरे बग़ल-गीर हुई जाती है फूल के जिस्म पे तितली का लहू है 'फ़ानी' क्या मिरे अहद की तस्वीर हुई जाती है