फ़रेब दे न कहीं अज़्म-ए-मुस्तक़िल मेरा हुजूम-ए-यास से घबरा न जाए दिल मेरा ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया मोहब्बत ने कि मेरे बस में नहीं है ख़ुद आज दिल मेरा मुबारक ऐश का माहौल ख़ुश-नसीबों को बहुत है मेरे लिए दर्द-ए-मुस्तक़िल मेरा सुन ऐ निगाह-ए-मोहब्बत से रूठने वाले तिरे ख़याल में गुम है सुकून-ए-दिल मेरा मिरे गुनाहों का अंजाम सोचने वाले ये देख कहता है क्या अश्क-ए-मुन्फ़इल मेरा दो-चार तिनकों की दुनिया अजीब दुनिया थी कि मुतमइन था हर इक तरह जिस में दिल मेरा उम्मीद-ए-लुत्फ़ किसी और से हो क्या 'हामिद' हुआ न जब कि मोहब्बत में मेरा दिल मेरा