फ़रेब-ए-ज़ौक़ को हर रंग में अयाँ देखा जहाँ जहाँ तुझे ढूँढा वहाँ वहाँ देखा वही है दश्त-ए-जुनूँ और वही है तन्हाई तिरे फ़रेब को ऐ गर्द-ए-कारवाँ देखा है बर्क़ को भी कोई लाग ना-मुरादों से गिरी तड़प के जहाँ उस ने आशियाँ देखा जुनूँ ने हाफ़िज़ा बर्बाद कर दिया अपना कुछ अब तो याद नहीं है किसे कहाँ देखा अजब ये दिल है जिसे बावजूद तन्हाई घिरा हुआ तिरे जल्वों के दरमियाँ देखा वहीं वहीं तिरे जल्वों ने आग भड़काई जहाँ जहाँ कोई बे-नाम-ओ-बे-निशाँ देखा तिलिस्म-ए-सोज़-ए-मोहब्बत की गर्मियाँ तौबा कि हम ने अश्क के पानी में भी धुआँ देखा गली में उन की क़दम रख के सख़्त हैराँ हूँ यहाँ ज़मीं को भी हम-रंग आसमाँ देखा लगा दी जान की बाज़ी ग़म-ए-मोहब्बत ने जब उन के हुस्न का सौदा बहुत गराँ देखा हज़ार बार सुने हम ने इश्क़ के नाले मगर किसी ने जो देखा तो बे-ज़बाँ देखा