फ़रेब-ए-राह से ग़ाफ़िल नहीं है जुनूँ गुम-कर्दा-ए-मंज़िल नहीं है मिरी नाकामियों पर हँसने वाले तिरे पहलू में शायद दिल नहीं है ख़ुदा को ना-ख़ुदा कहने लगा हूँ सफ़ीना तालिब-ए-साहिल नहीं है तिरी बज़्म-ए-तरब में आ गया हूँ मगर दिल को सुकूँ हासिल नहीं है अरे उस की निगाह-ए-बे-ख़बर भी मिरे अंजाम से ग़ाफ़िल नहीं है मिरे ज़ौक़-ए-सफ़र का पूछना क्या निगाहों में मिरी मंज़िल नहीं है ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ कर्ब-ए-मर्ग से 'नक़्श' गुज़र जाना कोई मुश्किल नहीं है