दोनों का ला-शुऊ'र है इतना मिला हुआ उस ने जो पी शराब तो मुझ को नशा हुआ किस की है धूल मेरे तसव्वुफ़ के पाँव में क्या है ये ख़ानक़ाह के दर पर पड़ा हुआ पैदा किया दोबारा मुझे उस के जिस्म ने मैं जो बरा-ए-वस्ल गया था मरा हुआ दुनिया की हर नमाज़ का मुझ को मिला सवाब मस्जिद का अंदरून है मुझ पर खुला हुआ ये भी मिरे चराग़-ए-ख़मोशी का फ़ैज़ है चारों तरफ़ है शोर हवा का मचा हुआ उस ने पढ़ी नमाज़ तो मैं ने शराब पी दोनों को लुत्फ़ ये है बराबर नशा हुआ देखा नहीं कभी न मुलाक़ात ही हुई 'एहसास'-जी का नाम है लेकिन सुना हुआ