फ़रिश्ते ध्यान लगाए उतरने लगते हैं जो साथ तुम हो तो लम्हे सँवरने लगते हैं वो एक याद की दस्तक जो दिल पे होती है मिरे ख़ज़ाने के मोती बिखरने लगते हैं उस इक निगाह की तासीर यूँ समझ लीजे हम अपने आप से मिलने में डरने लगते हैं ये आइने के अलावा सिफ़त किसी में नहीं सँवरने वाले सरापा बिखरने लगते हैं सजानी होती है जिस रात चाँद को महफ़िल सितारे शाम से छत पर उतरने लगते हैं दिखाई दे तो लिपट जाऊँ उस सदा से मैं कि जिस को सुन के 'सबा' फूल झरने लगते हैं