फ़र्क़ जब तक अँधेरों उजालों में था तुम जवाबों में थे मैं सवालों में था इक ग़ज़ल क्या कही मैं ने तेरे लिए तज़्किरा उस का कितने रिसालों में था मेरे चेहरे पे रौनक़ थी लब पे हँसी इन दिनों जब ज़माना ज़वालों में था आरज़ू उस की मेरे ही दिल में न थी मैं भी बचपन से उस के ख़यालों में था मछलियाँ प्यास से मुज़्तरिब थीं 'असद' बन के काली घटा अब्र बालों में था