फ़रोग़-ए-मेहर से रिंदों का आख़िर काम क्या होगा ज़मीं पर दौर चलता है फ़लक पर जाम क्या होगा ये मैं जानूँ कि मैं ने क्यूँ किया आग़ाज़ उल्फ़त का ये वो जानें कि इस आग़ाज़ का अंजाम क्या होगा तिरा तर्क-ए-सितम तम्हीद है तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ की मुझे इस दिल-शिकन-आराम से आराम क्या होगा परेशाँ मैं नहीं लेकिन जफ़ा पर तुम पशेमाँ हो वफ़ा पर मेरी इस से बढ़ के और इल्ज़ाम क्या होगा शराबी है वही रग रग में जिस की क़ुदरती मय हो न हो कैफ़-आफ़रीं जो दिल वो मय-आशाम क्या होगा ख़ुशी होगी दवामी ग़म-ज़दों को जब कभी होगी जिसे हर-वक़्त हो आराम उसे आराम क्या होगा गुमाँ था नेक मुझ पर नेक लोगों का सो अब तक है मगर अब मैं कहाँ 'नातिक़' मुझे इल्हाम क्या होगा