फ़ज़्ल मुझ पर मिरे ख़ुदा का है ये करिश्मा किसी दुआ का है इम्तिहाँ अब मिरी अना का है ये तक़ाज़ा तिरी रज़ा का है बहर-ए-ताज़ीम सुर्ख़-रूई है फ़ैज़ ये सब तिरी अता का है बादशाहों को सर-निगूँ देखा मर्तबा ये तिरे गदा का है कौन किस को वफ़ा-शनास कहे राज हर सम्त अब जफ़ा का है मुझ को रुस्वाइयों ने घेर लिया सर में सौदा तिरी वफ़ा का है जिस से इंसानियत है शर्मिंदा ये तरीक़ा ही इर्तिक़ा का है जिस की तहरीर से किरन फूटी ख़त ये 'मक़्सूद' ख़ुश-अदा का है