फ़ासलों की ख़ंदक़ें भरना ज़रूरी हो गया ज़िंदगी के वास्ते मरना ज़रूरी हो गया थी अधूरी दास्तान-ए-ज़िंदगी तेरे बग़ैर ज़िक्र तेरा इस लिए करना ज़रूरी हो गया बन गई है आज हर शय बे-यक़ीनी की दलील अपने साए से भी अब डरना ज़रूरी हो गया जंग रोटी की नहीं बच्चों के मुस्तक़बिल की है मा'रका अब ये भी सर करना ज़रूरी हो गया जो किसी दिन ख़्वाब सी आँखों में उतरी थी 'असर' रंग उस तस्वीर में भरना ज़रूरी हो गया