फ़साना-ए-ग़म-ए-दिल आप को सुना देते ग़ुरूर-ए-हुस्न को हम और कुछ बढ़ा देते निगाह-ए-शौक़ पे इल्ज़ाम-ए-हश्र आ जाता जो आप हश्र से पहले नक़ाब उठा देते निगाह-ए-नाज़ से इक बार देख लेते इधर तुम्हारी नज़रों को हम उम्र भर दुआ देते ख़ता मुआ'फ़ न होती ये गर्मी-ए-महफ़िल हम अपना दिल न अगर शम्अ साँ जला देते मता-ए-ज़ीस्त उसी दर्द को समझते हैं वगर्ना याद तिरी दिल से हम भुला देते ये गुलशन अपनी ही रंगीनियों पे नाज़ाँ है न जाने अहल-ए-नज़र हैं किसे दुआ देते ख़याल-ए-ज़ुल्फ़ रहा मक़्सद-ए-हयात 'शमीम' बहार-ए-शाम-ए-चमन पर ध्यान क्या देते