फ़ासला तुझ से बढ़ाने के लिए सोचा है अब तुझे दिल से भुलाने के लिए सोचा है जो निकलता है कभी जंग में तलवारों से हम ने वो गीत भी गाने के लिए सोचा है आज की रात कोई काम नहीं है हम को तेरी तस्वीर जलाने के लिए सोचा है तू ने नफ़रत ही कहाँ देखी है दीवानों की राह में ख़ाक उड़ाने के लिए सोचा है आज से रस्म बदल जाएगी मयख़ाने की पीने वालों ने पिलाने के लिए सोचा है हम वो दरवेश हैं घर-बार लुटा कर अपना जब भी सोचा है ज़माने के लिए सोचा है