फ़ासला यूँ तो बस मकाँ भर था लेकिन अपना सफ़र जहाँ भर था धूप दिल में फ़क़त गुमाँ भर थी अब्र आँखों में आसमाँ भर था आँख भर इश्क़ और बदन भर चाह शुक्र लब भर गिला ज़बाँ भर था क्या मिला जुज़ सुकूत-ए-बे-पायाँ शोर सीने में कारवाँ भर था मुज़्दा-ए-वस्ल था बस इक फ़िक़रा ख़ौफ़-ए-आदा तो दास्ताँ भर था