फ़ुज़ूल नाज़ उठाने से बात बिगड़ी है किसी को दिल में बसाने से बात बिगड़ी है था वाजिबी सा तअल्लुक़ तो बात अच्छी थी तअ'ल्लुक़ात बढ़ाने से बात बिगड़ी है हम इख़्तिलाफ़ को आपस में तय न कर पाए किसी को बीच बुलाने से बात बिगड़ी है मोहब्बतों में तकल्लुफ़ भी है सम-ए-क़ातिल क़दम सँभल के उठाने से बात बिगड़ी है तुम्हारे साथ बिगड़ने पे कुछ मलाल नहीं हमारी एक ज़माने से बात बिगड़ी है फ़ज़ा-ए-वहम दर आई तअ'ल्लुक़ात के बीच घड़ी घड़ी के फ़साने से बात बिगड़ी है हम अपनी ज़ात की तरदीद कर नहीं पाए अना के ज़ो'म में आने से बात बिगड़ी है तिरे बग़ैर गुज़ारा नहीं किसी सूरत उसे ये बात बताने से बात बिगड़ी है