फ़ुज़ूल वक़्त समझ के गुज़ार कर मुझ को वो जा रहा है कहीं दूर मार कर मुझ को तलाश मुझ को है उस चाहतों की देवी की जो छुप गई है हमेशा पुकार कर मुझ को तमाम उम्र तिरे इंतिज़ार में हमदम ख़िज़ाँ-रसीदा रहा हूँ बहार कर मुझ को तिरा ख़ुलूस तो चेहरे बदलता रहता है कि एक पल को ही अपना शुमार कर मुझ को 'नदीम' उस का पुराना लिबास हूँ शायद वो लग रहा है बहुत ख़ुश उतार कर मुझ को