फ़िक्र क्या इस की ये दिल और जिगर क्या होगा तेरे सौदाई को अंदेशा-ए-सर क्या होगा दश्त-पैमाई से दीवाने को हासिल क्या है कोई मंज़िल नहीं जिस की वो सफ़र क्या होगा लुत्फ़ जब है कि टपकते रहें थम कर आँसू सैल-ए-अश्क आया तो ऐ दीदा-ए-तर क्या होगा दिल में हो याद-ए-ख़ुदा और सनम पेश-ए-नज़र ऐसे उनवाँ के लिए ज़ौक़-ए-नज़र क्या होगा है मज़ा जब कि टपकता रहे आँसू बन कर बह चला ख़ून तो अंजाम-ए-जिगर क्या होगा आज इंसान की परवाज़ है बाला-ए-फ़लक कल ख़ुदा जाने कि अंजाम-ए-बशर क्या होगा दफ़्न क़ारूँ का ख़ज़ाना है तह-ए-ख़ाक अब तक ज़िंदगी में जो न काम आए वो ज़र क्या होगा 'आतिश'-ए-इश्क़ न सीने में अगर तेज़ हुई सर्द आहों का भला 'ज़ब्त' असर क्या होगा