फिर आस-पास से दिल हो चला है मेरा उदास फिर एक जाम कि बरजा हों जिस से होश हवास हज़ार रंग सही पर नहीं ज़रा बू-बास हवा-ए-सहन-ए-चमन हम को आए कैसे रास सितारे अब भी चमकते हैं आसमाँ पे मगर नहीं हैं शोमी-ए-क़िस्मत से हम सितारा-शनास खिले हैं फूल हज़ारों चमन के दामन पर नवा-गरान-ए-चमन को मगर नहीं एहसास दिल-ओ-जिगर में मुरव्वत से पड़ गए नासूर हमें नहीं है मगर उस के फल से फिर भी यास घिरे हुए हैं अगर बर्क़-ओ-बाद-ओ-बाराँ में तो क्या हुआ कि किनारे की है अभी तक आस जुनूँ को अपने छुपाएँ तो किस तरह यारो कि तार तार है इस शग़्ल-ए-पाक का अक्कास जो बेवफ़ाई-ए-गुल से शिकस्ता-ख़ातिर हो उसे बताओ कि है बा-वफ़ा-तर उस से घास मैं इस शराब-ए-मोहब्बत से तंग हूँ 'अर्शी' कि जितना पीजिए बढ़ती है और उतनी प्यास