फिर बहार आई मिरे सय्याद को पर्वा नहीं उड़ के मैं पहुँचूँ चमन में क्या करूँ पर वा नहीं जी जला कर एक बोसा माँगते हैं बार से आगे या क़िस्मत वो देखें हाँ करे है या नहीं हसरत ओ हिरमान ओ यास ओ हैरत रंज ओ तअब क्या कहूँ इस हिज्र में क्या क्या है और क्या क्या नहीं हर किसी से लग चले क्या ज़िक्र है इम्कान क्या हम उसे पहचानते हैं ख़ूब वो ऐसा नहीं चार उंसुर की ग़ज़ल 'रंगीं' कहो तुम दूसरी है क़सम तुम को अली-जी की ये मत कहना नहीं