फिर हसीं वादी-ए-गुलशन में सजा ली आँखें जब से उस शोख़ की देखी हैं ग़ज़ाली आँखें तू ने ऐ दोस्त ये क्यों मुझ से चुरा ली आँखें अब लिए फिरता हूँ दर दर पे सवाली आँखें दिल में उठने लगे तूफ़ान-ओ-हवादिस पैहम उन की आँखों से ये क्यों मैं ने मिला ली आँखें मुज़्तरिब हो गया दिल अपना नज़ारों के लिए देख कर मुझ को किसी ने जो छुपा ली आँखें मेरी आँखों को मयस्सर था सुकूँ जिन के सबब छुप गईं जाने कहाँ अब वो मिसाली आँखें कैसे हम करते तमन्नाओं का इज़हार 'अमीर' लब इधर खोले उधर उस ने निकाली आँखें