फिर इशरत-ए-साहिल याद आई फिर शोरिश-ए-तूफ़ाँ भूल गए नैरंगी-ए-दौराँ के मारे नैरंगी-ए-दौराँ भूल गए हर मंज़िल थी दिल की मंज़िल जब दिल को ग़म-ए-मंज़िल न रहा हर कूचा कूचा-ए-जानाँ था जब कूचा-ए-जानाँ भूल गए ने कैफ़-ए-मोहब्बत का आलम ने रक़्स-ए-वफ़ा ने मौज-ए-करम क्या वजह-ए-जवाज़-ए-बादा-कशी ऐ बादा-गुसाराँ भूल गए अब सेहन-ए-गुलिस्ताँ में 'जज़्बी' खिलती ही नहीं है कोई कली आहंग-ए-नशात-आगीं शायद मुर्ग़ान-ए-ख़ुश-अलहाँ भूल गए