फिर कभी लौट कर न आएँगे हम तिरा शहर छोड़ जाएँगे दूर-उफ़्तादा बस्तियों में कहीं तेरी यादों से लौ लगाएँगे शम-ए-माह-ओ-नुजूम गुल कर के आँसुओं के दिए जलाएँगे आख़िरी बार इक ग़ज़ल सुन लो आख़िरी बार हम सुनाएँगे सूरत-ए-मौजा-ए-हवा 'जालिब' सारी दुनिया की ख़ाक उड़ाएँगे