फिर काएनात-ए-याद पे लहरा गई हैं वो सीने में एक आग सी सुलगा गई हैं वो अल्लाह रे चश्म-ए-शोख़ का नज़्ज़ारा-ए-हसीं दिल में नज़र के साथ ही ख़ुद आ गई हैं वो ऐ आरज़ू-ए-दीद निगाहों का क्या क़ुसूर उठते ही उन के बाम पे शर्मा गई हैं वो आएगा फिर से आँख में सावन शबाब पर लाहौर से सुना है कि उक्ता गई हैं वो रोती है आरज़ू मिरी सीने पे रख के हाथ शायद नज़र के तीर से बर्मा गई हैं वो 'अलताफ़' आ रही थीं उठाए हुए नक़ाब पाते ही मुझ को राह में घबरा गई हैं वो