फिर ख़बर इस फ़स्ल में यारो बहार आने की है अब ब-जुज़ ज़ंजीर क्या तदबीर दीवाने की है ख़ाक कर देवे जला कर पहले फिर टिस्वे बहाए शम्अ मज्लिस में बड़ी दिल-सोज़ परवाने की है भेद ज़ुल्फ़ों का बयाँ करने में हो जाता है गुंग वर्ना कहने को जो पूछो सौ ज़बाँ शाने की है शैख़ उस की चश्म के गोशे से गोशे हो कहीं उस तरफ़ मत जाओ नादाँ राह मय-ख़ाने की है हौसला तंगी करे है शहर के कूचे हैं तंग अब हवस दिल में हमारे सैर वीराने की है चाहिए क्या बात कहते हो जहाँ में क़त्ल-ए-आम देर मुँह से अब तुम्हारे हुक्म फ़रमाने की है जी में आता है कि 'हातिम' आज उस को छेड़िए मुद्दतों से दिल में हसरत गालियाँ खाने की है