फिर कोई हादिसा हुआ ही नहीं कोई उन की तरह मिला ही नहीं हो चुकी पत्थरों की बारिश तक ज़ख़्म-ए-एहसास जागता ही नहीं सर से पानी गुज़र चुका है मगर दिल किसी तौर डूबता ही नहीं तय हुए मरहले कई लेकिन फ़ासला तो कोई मिटा ही नहीं उन को क्या क्या गिले रहे हम से हम को जिन से कोई गिला ही नहीं आस ने आ के दम कहाँ तोड़ा अब के 'रूही' पता चला ही नहीं