फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए गीत इक ऐसा सुनाओ कि हँसी आ जाए दम घुटा जाता है इस रात की तारीकी में कोई बस्ती ही जलाओ कि हँसी आ जाए तुम तो बे-लौस हो मुख़्लिस हो करम-फ़रमा हो इतने नज़दीक न आओ कि हँसी आ जाए काम करना है तो मैदान में आओ 'शौकत' इस तरह बैठ न जाओ कि हँसी आ जाए