फिर कोई ख़लिश नज़्द-ए-राग-ए-जाँ तो नहीं है फिर दिल में वही नश्तर-ए-मिज़्गाँ तो नहीं है क्यूँ शाम से डूबे से हो उम्मीद के तारो आबादी-ए-दिल-ए-शहर-ए-ख़मोशाँ तो नहीं है क्यूँ है दिल-ए-वहशत-ज़दा बेज़ार गुलों से ता-हद्द-ए-नज़र राह-ए-बयाबाँ तो नहीं है क्यूँ उठने लगे आज क़दम जानिब-ए-सहरा फिर जोश-ए-जुनूँ सिलसिला-ए-जुम्बा तो नहीं है ऐ दोस्त रह-ए-ज़ीस्त भी है तीरा-ओ-पुर-ख़म लेकिन ये तिरी काकुल-ए-पेचाँ तो नहीं है हर चोट का हासिल हैं बिलकते हुए आँसू ये दर्द ये ग़म क़िस्मत-ए-इंसाँ तो नहीं है ऐ काश कोई मौज मुझे इतना बता दे साहिल पे भी ये शोरिश-ए-तूफ़ाँ तो नहीं है हर शय में तिरे हुस्न की ज़ौ देख रहा हूँ हाँ मुझ को तिरी ज़ात का इरफ़ाँ तो नहीं है फूलों की तरह हँसने लगे ज़ख़्म हज़ारों दिल भी कहीं मजरूह-ए-बहाराँ तो नहीं है लहराने लगे क्यूँ मिरी पलकों में हसीं ख़्वाब ये साया-ए-गेसू-ए-परेशाँ तो नहीं है ये रंग ये ख़ुशबू ये तबस्सुम ये शुआएँ ये अंजुमन-ए-ज़ोहरा-जबीनाँ तो नहीं है ऐ दोस्त मैं जीता हूँ तिरे ग़म के सहारे अग़्यार का मुझ पर कोई एहसाँ तो नहीं है यूँ दिल है हर इक रंज-ओ-अलम का मुतहम्मिल लेकिन ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ तो नहीं है ये नाज़ ये अंदाज़ ये शोख़ी ये अदाएँ ऐ दिल ये कहीं बज़्म-ए-हसीनाँ तो नहीं है ये चाल ये आँखें ये नज़र देखना 'मुज़्तर' ये शोख़ वही रश्क-ए-ग़ज़ालाँ तो नहीं है