फिर सियह-पोश हुई शाम नज़र में रखना तुम ये बेदर्दी-ए-अय्याम नज़र में रखना मैं ने बातिल से कभी सुल्ह नहीं की लोगो मेरी हक़-गोई का इनआ'म नज़र में रखना ख़ूब है दर्द-ओ-ग़म-ए-दिल का मुदावा लेकिन ख़ुद को भी ऐ दिल-ए-नाकाम नज़र में रखना ठोकरें खा के सँभलते हैं सँभलने वाले ये जो पत्थर हैं ब-हर गाम नज़र में रखना इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत से गुज़रने वालो रोज़-ए-आशूरा का हंगाम नज़र में रखना काबा-ए-फ़न की कशिश खींच रही है दिल को फ़िक्र कब बाँधेगी एहराम नज़र में रखना इंतिसाब-ए-ग़म-ए-हस्ती के लिए अब ऐ 'नाज़' ख़ूबसूरत सा कोई नाम नज़र में रखना