फिर तिरे हिज्र के जज़्बात ने अंगड़ाई ली थक के दिन डूब गया रात ने अंगड़ाई ली जैसे इक फूल में ख़ुश्बू का दिया जलता है उस के होंटों पे शिकायात ने अंगड़ाई ली सुर्ख़ ही सुर्ख़ है इस शहर का मंज़र-नामा अम्न होते ही फ़सादात ने अंगड़ाई ली हम भी इस जंग में फ़िलहाल किए लेते हैं सुल्ह देखा जाएगा जो हालात ने अंगड़ाई ली गर्मी-ए-आह से नम हो गईं आँखें ऐ दोस्त बढ़ गया हब्स तो बरसात ने अंगड़ाई ली फ़ासला रंज-ओ-मसर्रत में बस इक साँस का है मुस्कुराए थे कि सदमात ने अंगड़ाई ली झील जैसी वो चमकती हुई आँखें 'तसनीम' उन में डूबे थे कि नग़्मात ने अंगड़ाई ली