फिर उठी आज वो निगाह-ए-नाज़ इक नए दौर का हुआ आग़ाज़ हर हक़ीक़त है आईना फिर भी ज़र्रा ज़र्रा है इक जहान-ए-राज़ लब-ए-शायर पे गीत रक़्साँ हैं रूह-ए-फ़ितरत है गोश-बर-आवाज़ मेरी ख़ामोशियों के आलम में गूँज उठती है आप की आवाज़ कोई आलम नहीं क़याम-पज़ीर लम्हा लम्हा है माइल-ए-परवाज़ 'नक़्श' हम अहल-ए-दिल ने देखे हैं मंज़िल-ए-इश्क़ के नशेब-ओ-फ़राज़