फिर वही हम हैं ख़याल-ए-रुख़-ए-ज़ेबा है वही सर-ए-शोरीदा वही इश्क़ का सौदा है वही दाना-ओ-दाम सँभाला मिरे सय्याद ने फिर अपनी गर्दन है वही इश्क़ का फंदा है वही फिर लगी रहने तसव्वुर में वो मिज़गान-ए-दराज़ रग-ए-जाँ में ख़लिश-ए-ख़ार-ए-तमन्ना है वही फिर लगा रहने वही सिलसिला-ए-नाज़-ओ-नियाज़ जल्वा-ए-हुस्न वही ज़ौक़-ए-तमाशा है वही फिर हुआ हम को दिल-ओ-दीं का बचाना मुश्किल निगह-ए-नाज़ का फिर हम से तक़ाज़ा है वही नाज़ ने फिर किया आग़ाज़ वो अंदाज़-ए-नियाज़ हुस्न-ए-जाँ-सोज़ को फिर सोज़ का दावा है वही महव-ए-दीद-ए-चमन-ए-शौक़ है फिर दीदा-ए-शौक़ गुल-ए-शादाब वही बुलबुल-ए-शैदा है वही फिर चमक उट्ठी वो कजलाई हुई चिंगारी रख़्त-ए-हस्ती है वही इश्क़ का शोअ'ला है वही आरज़ू जी उठी फिर प्यार जो उस बुत ने किया फिर लब-ए-यार में एजाज़-ए-मसीहा है वही पास-ए-नामूस ने फिर रुख़्सत-ए-रफ़्तन चाही शोहरत-ए-हुस्न वही उल्फ़त-ए-रुस्वा है वही फिर हुई लैला-ओ-मजनूँ की हिकायत ताज़ा उन का आलम वही 'नैरंग' का नक़्शा है वही