फिरते रहे अज़ल से अबद तक उदास हम आए न इंक़िलाब-ए-ज़माना को रास हम देखेंगे छू के सुर्ख़ बदन आफ़्ताब का तब्दील कर चुके हैं ख़ला का लिबास हम ये ज़िंदगी तो ख़ून-ए-जिगर पी गई तमाम कैसे बुझाएँ सूखे समुंदर की प्यास हम शहर-ए-जुनूँ की धूप जला देगी जिस्म-ओ-जाँ चलिए चलें घनेरे चनारों के पास हम पुर-नूर है हमीं से ख़राबा हयात का रातों का रंग तुम हो उजालों की आस हम अमृत शराब ज़हर अजी कुछ तो डालिए आए हैं ले के दूर से ख़ाली गिलास हम जब से बिछड़ गई तिरी ख़ाना-ब-दोश याद ऐ 'प्रेम' सूने घर की तरह हैं उदास हम