फ़ित्ना-परवर है फ़ित्ना-ज़ा है झूट हर बुराई की इब्तिदा है झूट झूट मानो न तुम कहा मेरा मुँह पे झूटे के खेलता है झूट नाम रक्खा है उस का पॉलीसी कैसा मक़्बूल हो गया है झूट जो क़सम बात बात पर खाए जान लो तुम ये बक रहा है झूट पा नहीं सकता है दरोग़ फ़रोग़ क्या बुज़ुर्गों ने ये कहा है झूट साँच को आँच तक न पहुँचेगी लाख दुनिया में चल रहा है झूट बच के झूटे से चाहिए रहना पर्दा-ए-मक्र और दग़ा है झूट झूट को झूट गर कहा हम ने तुम ही कह दो कि इस में क्या है झूट काँप उठता है ऐ अता ईमान जब कोई शख़्स बोलता है झूट