फूल पे जब इक तितली देखी अपनी जवानी याद आई आज न जाने फिर क्यूँ मुझ को अपनी कहानी याद आई ज़ख़्म के टाँके टूट गए सब रात चली जो पुर्वाई फिर तो चले थे ज़ख़्म मगर फिर तेरी निशानी याद आई यूँ तो सब कुछ भूल चुका हूँ तर्क-ए-वफ़ा के बा'द मगर दर्द उठा जब दिल में मेरे तेरी निशानी याद आई तेरे कुँवारे जिस्म की ख़ुश्बू फैल गई है कमरे में तुझ को हवा जब छू कर आई रात सुहानी याद आई शम्अ' की लौ पर जलते देखा रात जो इक परवाने को सारी कहानी माज़ी की वो अपनी ज़बानी याद आई बहते हुए इक दरिया को जो देखा मैं ने एक 'नज़र' हाए किसी के लहजे की वो नर्म कहानी याद आई