फूल होंटों को ग़ज़ल-ख़्वाँ देखना मुझ को बहकाने के सामाँ देखना देखना दिल के दर ओ दीवार पर चाँद चेहरों का चराग़ाँ देखना गुल-लबों से की है मैं ने गुफ़्तुगू मेरे होंटों पर गुलिस्ताँ देखना ज़ुल्फ़ लहरा के मिरे दिल में ज़रा ख़्वाहिशों का एक तूफ़ाँ देखना उस को पा लेना तो फिर मेरी तरह ख़ुद को ख़ुद अपना ही ख़्वाहाँ देखना जलते रहना उस के ग़म की आँच पर दर्द बन जाएगा दरमाँ देखना तुझ को जब चाहा तो 'बिस्मिल' बन गया कितना दाना है ये नादाँ देखना