फूल जितने हैं तुम्हारे हार में सब गुँधे हैं आँसुओं के तार में जिस ने चाहा तुझ को सर-गरदाँ रहा दश्त में कोई कोई कोहसार में दिल के टुकड़े ओ सितमगर बाँध ले कोई ख़ंजर में कोई तलवार में हर जगह हैं चाहने वाले तिरे कोई सहरा में कोई गुलज़ार में है जगह सर फोड़ लेने को बहुत क्या धरा है आप की दीवार में तू अगर दम भर को आ जाए मसीह जान आ जाए तिरे बीमार में जो बने ऐ चर्ख़ वो हम पर बने पर न फ़र्क़ आए तिरी रफ़्तार में आँखों ही आँखों में ऐ 'अंजुम' कटी रात सारी इंतिज़ार-ए-यार में