फूल सहरा में खिला दे कोई मैं अकेला हूँ सदा दे कोई कोई सन्नाटा सा सन्नाटा है काश तूफ़ान उठा दे कोई जिस ने चाहा था मुझे पहले-पहल उस सितमगर का पता दे कोई जिस से टूटे मिरा पिंदार-ए-वफ़ा मुझ को ऐसी भी सज़ा दे कोई रात सोती है तो मैं जागता हूँ उस को जा कर ये बता दे कोई जो मेरे पास भी है दूर भी है किस तरह उस को भुला दे कोई इश्क़ के रंग लिए फिरता हूँ उस की तस्वीर बना दे कोई दिल के ख़िर्मन में निहाँ हैं शो'ले अपने दामन की हवा दे कोई फूल फिर ज़ख़्म बने हैं 'नासिर' फिर ख़िज़ाओं को दुआ दे कोई