फूल सोए हुए थे छाती पर रात कितना महक रहा था घर अश्क सैराब हैं लहू पी कर और प्यासा है भाई का ख़ंजर पीठ काँटों से हो गई छलनी हौसला था उठा दिया बिस्तर दिल-रुबा नाम है कहानी का ख़ूँ चशीदा है एक इक मंज़र मुँह अँधेरे ही जागना है तुझे मेरे ज़ख़्मों पे अपने कान न धर