फूल थे रंग थे लम्हों की सबाहत हम थे ऐसे ज़िंदा थे कि जीने की अलामत हम थे सब ख़िरद-मंद बने फिरते थे माशा-अल्लाह बस तिरे शहर में इक साहिब-ए-वहशत हम थे नाम बख़्शा है तुझे किस के वुफ़ूर-ए-ग़म ने गर कोई था तो तिरे मुजरिम-ए-शोहरत हम थे अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे धूप के दश्त में कितना वो हमें ढूँडता था 'ए'तिबार' उस के लिए अब्र की सूरत हम थे