गए दिनों के दरख़्शंदा राब्तों से न रूठ मिरे ख़ुलूस के ताबिंदा सिलसिलों से न रूठ मोहब्बतों की वफ़ा-केश बारिशों से न रूठ किसी से रूठ मगर अपने दोस्तों से न रूठ ख़िज़ाँ की ज़र्द हवाएँ तिरी तलाश में हैं चमन से रूठ दरख़्तों की टहनियों से न रूठ पलट न जाएँ हमेशा को तेरे आँगन से गुदाज़ लम्हों की बे-ख़्वाब आहटों से न रूठ अज़ीज़ जान खुली खिड़कियों की ख़ुश्बू को गली से तर्क-ए-मरासिम सही घरों से न रूठ गुमान-ओ-वहम के बे-नाम झुटपुटों से निकल ज़बाँ न खोल मगर दिल की धड़कनों से न रूठ जवाँ रुतों को गले से लगा के जी 'इरफ़ान' दिल-ओ-नज़र के ज़िया-बार मौसमों से न रूठ