गई रुतों की रफ़ाक़तों में तुम्हें मिलूँगी मैं चाहतों की रियाज़तों में तुम्हें मिलूँगी तुम अपनी मंज़िल के रास्तों में जो देख पाओ तो रास्तों की सऊबतों में तुम्हें मिलूँगी नहीं मिलूँगी किसी भी वस्ल-आश्ना सफ़र में मैं हिज्र-मौसम की शिद्दतों में तुम्हें मिलूँगी कि मैं ने चाहत को भी अक़ीदा बना लिया है अगर मिली तो अक़ीदतों में तुम्हें मिलूँगी मैं जानती हूँ कि तेरे इदराक में नहीं हूँ मगर वफ़ा की शबाहतों में तुम्हें मिलूँगी हो क़ैद तुम अपनी ज़ात के ख़ोल में अगरचे बस एक ख़ुश्बू हूँ दस्तकों में तुम्हें मिलूँगी वो बिंते-ए-हव्वा को गो नज़र से गिरा रहे हैं मगर वो कहती है रिफ़अ'तों में तुम्हें मिलूँगी नहीं है 'शाहीन' ख़्वाब पर ए'तिबार मुझ को सो ज़िंदगी की हक़ीक़तों में तुम्हें मिलूँगी