ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया झूट सच आज़मा के देख लिया उन के घर 'दाग़' जा के देख लिया दिल के कहने में आ के देख लिया कितनी फ़रहत-फ़ज़ा थी बू-ए-वफ़ा उस ने दिल को जला के देख लिया कभी ग़श में रहा शब-ए-वा'दा कभी गर्दन उठा के देख लिया जिंस-ए-दिल है ये वो नहीं सौदा हर जगह से मँगा के देख लिया लोग कहते हैं चुप लगी है तुझे हाल-ए-दिल भी सुना के देख लिया जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा बार-हा आज़मा के देख लिया ज़ख़्म-ए-दिल में नहीं है क़तरा-ए-ख़ूँ ख़ूब हम ने दिखा के देख लिया इधर आईना है उधर दिल है जिस को चाहा उठा के देख लिया उन को ख़ल्वत-सरा में बे-पर्दा साफ़ मैदान पा के देख लिया उस ने सुब्ह-ए-शब-ए-विसाल मुझे जाते जाते भी आ के देख लिया तुम को है वस्ल-ए-ग़ैर से इंकार और जो हम ने आ के देख लिया 'दाग़' ने ख़ूब आशिक़ी का मज़ा जल के देखा जला के देख लिया