ग़ैर से बद-गुमान हो जाते मेरी सुनते तो कान हो जाते मेहरबाँ आसमान हो जाते आप अगर मेहरबान हो जाते मेरे घर मेहमान हो जाते दिल में तुम आ के जान हो जाते जाते हम ज़ार उस गली में अगर ज़र्रे भी आसमान हो जाते पीर-ए-फ़ानी को वक़्त-बादा-कशी हम ने देखा जवान हो जाते नाम मेरा जो बज़्म में आता मेरे लाखों बयान हो जाते दिल तो कहता है लुत्फ़-ए-वस्ल ये था जान-ए-मन मेरी जान हो जाते कहते तेरी सी बर्ग-ए-गुल बुलबुल ये भी तेरी ज़बान हो जाते बोसे क्या ले कोई तसव्वुर में कि हैं रुख़ पर निशान हो जाते ज़ुल्म ढाते जो आते तुर्बत पर फ़र्श-ए-रह आसमान हो जाते बादलों में जो मय भरी होती झुक के ऊँची दुकान हो जाते शैख़ जी मय-कदा वो जन्नत है तुम भी जा कर जवान हो जाते पासबाँ तो रक़ीब बन जाता हम तिरे पासबान हो जाते मिलते कम-उम्र मह-जबीं जो 'रियाज़' हम अभी नौजवान हो जाते