ग़ैरत-ए-महर रश्क-ए-माह हो तुम ख़ूबसूरत हो बादशाह हो तुम जिस ने देखा तुम्हें वो मर ही गया हुस्न से तेग़-ए-बे-पनाह हो तुम क्यूँ-कर आँखें न हम को दिखलाओ कैसे ख़ुश-चश्म ख़ुश-निगाह हो तुम हुस्न में आप के है शान-ए-ख़ुदा इश्क़-बाज़ों के सज्दा-गाह हो तुम हर लिबास आप को है ज़ेबिंदा जामा-ज़ेबों के बादशाह हो तुम फ़ौक़ है सारे ख़ुश-जमालों पर वो सितारे जो हैं तो माह हो तुम हम से पर्दा वही हिजाब का है कूचा-गर्दों से रू-बराह हो तुम क्यूँ मोहब्बत बढ़ाई थी तुम से हम गुनाहगार बे-गुनाह हो तुम जो कि हक़्क़-ए-वफ़ा बजा लाए शाहिद अल्लाह है गवाह हो तुम है तुम्हारा ख़याल पेश-ए-नज़र जिस तरफ़ जाएँ सद्द-ए-राह हो तुम दोनों बंदे उसी के हैं 'आतिश' ख़्वाह हम उस में होवें ख़्वाह हो तुम