ग़ैर-ए-तवक्कुल नहीं चारा मुझे अपने ही दम का है सहारा मुझे हिर्स-ओ-तमअ ने तो डुबोया ही था सब्र-ओ-क़नाअत ने उभारा मुझे जो वो कहे उस को सज़ा-वार है चून-ओ-चरा का नहीं यारा मुझे बे-अदबों की अदब-आमोज़ियाँ इन के बिगड़ने ने सँवारा मुझे कोशिश-ए-बे-सूद मुशव्वश न कर क़अर न बन जाए किनारा मुझे ज़िश्ती-ए-पिंदार दिलाता है याद क़िस्सा-ए-असकंदर-ओ-दारा मुझे नंग-ए-मुज़िल्लत से छुड़ा ले गया जोश-ए-हमिय्यत का हरारा मुझे औज-ए-मआली पे उड़ा ले गया तौसन-ए-हिम्मत का तरारा मुझे आह नहीं रुख़्सत-ए-इफ़शा-ए-राज़ क़िस्सा तो मालूम है सारा मुझे फ़ुर्सत-ए-औक़ात है बस मुग़्तनिम ये नहीं मिलने की दोबारा मुझे