ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत दिल का ये नक़्श नहीं नक़्श-ए-क़दम की सूरत रात बीमार पे भारी है कहीं तार-ए-नफ़स टूट जाए न तिरे क़ौल-ओ-क़सम की सूरत मय-कशो ख़ूब पियो इतना मगर होश रहे जाम छलके न कभी दीदा-ए-नम की सूरत हम सा बद-बख़्त ज़माने में कोई क्या होगा हम को ख़ुशियाँ भी मिलीं दर्द-ओ-अलम की सूरत कौन है जिस से हमें प्यार के दो बोल मिलें आज के लोग हैं पत्थर के सनम की सूरत फिक्र-ओ-एहसास की आँचों से पिघल कर 'वाहिद' मिस्ल-ए-शमशीर हुई अपने क़लम की सूरत