ग़ज़ब है देखने में अच्छी सूरत आ ही जाती है नहीं रोके से दिल रुकता तबीअ'त आ ही जाती है भरा है दिल हमारा दोस्तों की बेवफ़ाई से कहाँ तक ज़ब्त बातों में शिकायत आ ही जाती है पड़ेगा तेरे जी में शक न सुन ग़म्माज़ की बातें हज़ार आईना हो दिल पर कुदूरत आ ही जाती है ये क्या मा'लूम था ये इश्क़ सौदाई बनाएगा कहीं टलती है आने वाली आफ़त आ ही जाती है तिलाई रंग पर क्यूँ कर न उन लोगों को ग़र्रा हो ये ज़र वो चेहरा है ख़ातिर में नख़वत आ ही जाती है जुनून-ए-इश्क़ में हर चंद कुछ ग़ैरत नहीं लेकिन जो कोई तान करता है हमीयत आ ही जाती है अजब रूदाद है अपनी बयाँ करते हैं हम जिस से निकल आते हैं आँसू उस को रिक़्क़त आ ही जाती है निकल जाए न क्यूँ कर शहर से मजनूँ बयाबाँ को बशर को अपनी उर्यानी से ग़ैरत आ ही जाती है हँसी अच्छी नहीं देखो तमीज़ इस में नहीं रहती कि मुँह लग चलने में बोसे की नौबत आ ही जाती है लचकते ही कमर ज़ुल्फ़-ए-रसा की झोंक लेने से असर मा'शूक़-पन का है नज़ाकत आ ही जाती है बहुत अपने को शाइस्ता वो ग़ैरों में बनाते हैं तबीअ'त में जो गर्मी है शरारत आ ही जाती है कहाँ तक नेक सोहबत का असर होगा न इंसाँ को मिले ताँबा जो सोने से तो रंगत आ ही जाती है ख़ुदा सूरत न दिखलाए मुझे आतिश-इज़ारों की हज़ार उन से है दिल ठंडा हरारत आ ही जाती है दुआ-ए-मग़्फ़िरत जब माँगते हैं उस से रो रो कर बराबर जोश में ख़ालिक़ की रहमत आ ही जाती है कोई महबूब उस की जान का साइल जो होता है झुका लेता है 'बहर' आँखें मुरव्वत आ ही जाती है