ग़ज़ल कहूँ कि तुझे हासिल-ए-ग़ज़ल लिखूँ मैं लफ़्ज़ लिखूँ मगर फिर बदल बदल लिखूँ तुम्हारे साथ जो लम्हे नसीब में आए उन्हें मैं उम्र कहूँ और एक पल लिखूँ अबद क़रार दूँ चाहत की हर निशानी को मैं तेरे प्यार को सरमाया-ए-अज़ल लिखूँ तिरी नज़र के बदलते हुए इशारों को मैं तेरा आज कहूँ और अपना कल लिखूँ लिखूँ तो लिखता चला जाऊँ इश्क़ की ज़िद है है मस्लहत का तक़ाज़ा सँभल सँभल लिखूँ वो मेरी रूह में शामिल है इस तरह 'अनवर' बिन उस के ज़ीस्त फ़क़त साँस का अमल लिखूँ