ग़ज़लों से तज्सीम हुई तकमील हुई नुक़्ते नुक़्ते से मेरी तर्सील हुई नोच रही है रूह के रेशे रेशे को इक ख़्वाहिश जो रफ़्ता रफ़्ता चील हुई मरने लगा रग रग में सफ़्फ़ाकी का ज़हर शहर-ए-दिल की आब-ओ-हवा तब्दील हुई एक जहान-ए-ला-यानी ग़र्क़ाब हुआ एक जहान-ए-मानी की तश्कील हुई मिस्र-ए-जाँ 'साक़िब' सब्ज़ ओ शादाब हुआ जब से आँख मिरी दरिया-ए-नील हुई